खिड़की खुलती नहीं, दरवाज़े भी बंद हैं
एक तितली है अनजान सी,
अपने ही घर की गलियों में तंग है।
पर्दों में उलझे मासूम उसके कुछ सवाल हैं
पूछने को कोई दिखता नहीं,
बस इसलिए दराज़ में जवाबों को रखा सम्भाल है।
दीवारे सतरंगी रंगों की कहानियों सी सजी हैं
बाग में फूलों की कमी भी नहीं,
पर मेज़ पे रखे फूलदान की क़िस्मत खाली ही रही है।
पायदान के नीचे हौसलों की चाबियां रखी तो हैं
पर छत से जब अंधेरों की बूंदे टपकीं,
गीली सीढ़ियों पे तितली फिसल सी जाती है।
अपने ही पंखों के रंग में बिखरी हुई, अब आंगन में बैठती कम है
कहने को सूरज की चमक, रोशनदान से आती है,
उड़ने को खुला आसमान भी होगा, मगर तितली बस उड़ने से घबराती है।
मेरा नाम अक्सा है, जिसका मतलब है मंदिर/मस्जिद ।
बहुत ज़्यादा तो कहना आता नहीं मुझे, बस इसलिए ही एक दिन जब किसी तितली को गौर से देखा, तो लगा कहीं ना कहीं वो मेरा ही किरदार निभा रही है। काश! ये तितली जल्दी बेख़ौफ़ उड़ पाए!
Omg! Thanks a lot for appreciating!!🧚